जेब में प्रेम-पत्र

वह आज सुबह से अपने मन में मच रही उथल-पुथल को काबू में करने का प्रयास कर रहा था, पेट में हल्की घुड़-घुड़ उसकी घबराहट को दर्शा रही थी | बार-बार अपने फैसले का मंथन करता और अपने हाथ में रखे एक कागज के पन्ने को देखता, औरों के लिए तो वो मात्र कोरा पन्ना ही था लेकिन उसके लिए तो उसका सब कुछ था | उसने अपना दिल खोलकर बड़े करीने से उस कोरे पन्ने पर सजाया था, अपने दिल के जज्बातों को शब्दों की चाशनी में डुबोकर ऐसी रसीली शब्दमाला बुनी थी की पढने वाला मंत्र मुग्ध हो जाए | उसके हाथ में उसका प्रेमपत्र था|
                                
                                     उसने जब उसे पहली बार देखा था तब उसे कुछ खास नहीं लगा लेकिन कई बार मिलने और मिलने पर होने वाली बात-चीत, स्वभाव और विचार-विन्यास ने उसे इस कदर प्रभावित किया की युवावस्था की दहलीज पर ही वो उसे दिल दे बैठा | बातें और मुलाकातें चलती रही लेकिन कभी प्यार-व्यार जैसा जिक्र नहीं हुआ, हालाँकि वो काफी सहनशील और विनम्र किस्म का था लेकिन उसके लिए मन में उमड़ता प्यार उसकी सहनशीलता की सारी हदें पार कर चुका था | आखिर में थक हार कर उसने अपने प्यार का इजहार कागज के जरिये करने का सोचा और दो दिन तक कई कागज़ ख़राब करने के बाद एक प्रेमपत्र ऐसा लिखा की आम आदमी को तो उस पत्र से ही प्यार हो जाए |
                                     अब हाथ में वो प्रेम पत्र लिए मन में उठते विचारों के तूफ़ान से झूंझ रहा है | सोचता है की पत्र दूँ या नहीं | दे दिया और उसे बुरा लगा तो दोस्ती भी खत्म, नहीं दिया तो कम से कम दोस्ती तो आजीवन बनी रहेगी | कभी खुद के और उसके जीवन की तुलना करने लगता है | विचारों के भंवर में जब उसका सर दुखने लगता है तो वो सो जाता है | उठता है तब तक सांझ ढल जाती है और उसे याद आता है की उससे मिलने जाना था |वो जल्दी से तैयार होकर प्रेमपत्र को जेब में डाल, निकल पड़ता है उससे मिलने के लिए |आज वो थोडा नर्वस सा है, आज क्या वो तो रोज ही उससे मिलने जाते वक्त नर्वसाया हीरहता है लेकिन आज थोडा ज्यादा है | मन में दढृ निश्चय कर की आज तो कह ही डालूँगा वोआगे बढ़ता है की उसे अचानक याद आता है की “प्यार तो सच्चा है और उसकी भावना भी पवित्र है लेकिन प्यार स्वीकार हो भी गया तो अपने प्यार की जिन्दगी का पोषण कैसे करेगा ? क्या सारा जीवन मध्यमवर्गीय झमेलों में ही गुजरना है ? क्या करेगा प्यार हासिल कर, जब उसे एक अच्छा और शानदार जीवन न दे सके ?”दरवाजे के बाहर खड़े होकर उसने काफी देर तक अपने प्रेम के इजहार और प्रेमी के दरवाजेको गौर से देखा और फिर कुछ निश्चय करके प्रेमपत्र जेब में डालकर अपनी दोस्त से मिलकरवापिस घर लौट आया | प्रेम और अर्थ के तराजू में आज अर्थ एक बार फिर जीत गया था एंव अर्थ 0-9 से काफी आगे चल भी रहा था | इन नौ प्रयासों में उसने पूरी कोशिश की थी की उसे कभी इस बात की भनक न लगे की उसने उसके लिए एक पत्र लिखा है, एक प्रेमपत्र | भगवान जाने ये प्रेमपत्र जेब से बाहर कब आएगा ?




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5 टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही शानदार
    आपने बहुत सरल तरीके से एक कठिन तथ्य या कहे तो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का एक पन्ना यहां उजागर किया है।
    इसी प्रकार लेखन कार्य जारी रखे।
    आपका शुभचिंतक

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    1. अपने विचार मुझ तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद मित्र

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  2. Nice one but again tragic end like previous😁😁😁

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  3. बेनामी15/5/20, 7:17 pm

    Jordaar kahani hai.

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