वो थका हारा घर आया ही था कि उसे सुनाई पड़ा एक स्वर, “आ गए, आइये, पधारिये, सामान तो कुछ लाये नहीं
होंगे महाशय !” वो कुछ बोलता इससे पहले ही दूसरा हमला हुआ, “कैसे मर्द हो अपने परिवार की छोटी से छोटी
ख्वाहिस तो तुमसे पूरी होती नहीं, पता नहीं दिन-भर कहाँ आवारागर्दी करते घुमते हो|”
उसने बोलने की हिमाकत ही नही की | जो बात कहना चाह रहा था उसे मन में ही दबाकर चुप-चाप जाकर
चारपाई पर पसर गया | सोचने लगा की हालात हमेशा से ही ऐसे नही थे, वो अच्छा खासा पढ़ा लिखा और वेल
सेटल्ड आदमी था, समाज में नाम, रुतबा, पैसा, बंगला, गाड़ी और नौकर-चाकर किसी भी चीज की कमी नहीं थी |
समाज में रुतबा होने की वजह से उसने अपनी पसंद की सुंदर और सुशील कन्या से शादी भी कर ली | उसे ये
सोचकर हँसी आ गयी की जिसे वो सुशील रूप में गृहलक्ष्मी बनाकर लाया था आज वो कैसी कर्कशा बन बैठी है,
तभी एक कर्कश ध्वनि फिर कानों में पड़ी, “यूँ पड़े पड़े क्या मुस्कुरा रहे हो, जेब में नहीं है आधा आना और साहब का चालू है मुस्कुराना | जाओ और आटा चक्की से आटा ले आओ |”
वो आटा लेने चला गया लेकिन रस्ते में सोचता रहा की जब सम्पति थी तो कितने मित्र थे और कितने हसीन दिन
थे लेकिन जैसे ही विपत्ति आयी, सगे भाईयों ने भी मुंह मोड़ लिया | वो भाई जिनको पढ़ाने और तैयार करने में
इसने अपना खून पसीना बहाया था| खैर, जिसे यह कर्कशा कह रहा था सिर्फ उसी ने साथ नहीं छोड़ा | इतने में ही
आटा चक्की आ गयी उसने आटा लिया और चल दिया घर की तरफ |
घर जाकर वािपस ख्यालों में खो गया, उधर वो खाना बनाते हुए सोच रही थी, “हे! भगवान माफ़ करियेगा, इन्हें
जली-कटी सुनाने को बिलकुल मन नहीं है लेकिन अगर ऐसा न करूं तो इनके मन के गुबार को बाहर न निकाल
पाउंगी | ये धन सम्पति जाने के बाद से इसी सोच में चुप-चाप घुट-घुटकर जी रहे है| प्रेम से ये कुछ नहीं बोले
क्या पता अब जली कटी सुनाऊं तो कुछ बोलें और अपने मन को हल्का करें”, ये सोच ही रही थी की उसके पैरों से
एक चाबियों का गुच्छा टकराया | वो सकते में आ गयी कि ये क्या हुआ | वो बोला, “ मै सब जानता हूँ, आज यही
खबर सुना रहा था लेकिन तेरी जली कटी बंद हो तब न | मै सदमे में हूँ तो हूँ , तू भी तो सुखी नहीं है| ये ले आज
हमारे सारे दुखों का खात्मा हो गया, जो सम्पति का विवाद चल रहा था वो आज खत्म हुआ और हम केस जीत गए
है |”
उसका गला भर आया था और रुंधे गले से ही उसने कहा, “ तेरी कर्कश और जली कटी सुनकर रोज खून खौलता
था, आज जब केस जीता तो एक बारगी मन में विचार आया कि सारी धन दौलत दान कर दूँ क्योकि तेरा मोह भी
रुपयों से है, इसिलए तू मुझसे प्रेम नहीं करती और मुझे हर बार जलाने में लगी रहती है लेकिन फिर सोचा तो पाया की यदि रुपयों से मोह होता तो तू मुझे कब की छोड़ कर जा चुकी होती लेकिन मेरे साथ खड़ी रही तो आ आज से नया जीवन जो सुख से भरा होगा वो भी तेरे साथ ही आरम्भ करूँगा | ये हमारे नए महल की चाबियाँ है, कल गृह प्रवेश करना है, तैयार रहना | ये सारी सम्पति के कागजात जो मैने तेरे नाम कर छोड़ी है|”
उसकी बातें सुनकर उसकी आँखे भी भर आईं और दोनों गले मिलकर काफी देर तक रोते रहे और बिना कुछ खाए ही सो गए | अगली सुनहली सुबह उनके लिए नया उजाला लायी थी लेकिन ये क्या वो तो उठी लेकिन वो न उठा |उसका निस्तेज शरीर न जाने रात में कब ठंडा पड़ चुका था |
3 टिप्पणियाँ
Adbhut 👍👍👌
जवाब देंहटाएंअत्यन्त खूबसूरत तरीके से हकीकत को पिरोया गया है जब हमे और उन्हें सिर्फ एक दूसरे की जरूरत होती है तो पता नही क्यों बस धन और विलास के मोह में जीवन खत्म कर देते है। बस लेखक महोदय द्वारा इस छोटे से सत्य पर प्रकाश डाला गया है जो सराहनीय है आपसे आगे भी ऐसी वास्तविक कल्पना की कामना है।
जवाब देंहटाएंभावनात्मक रिश्ता कुछ अजीब होता है दुःख भी देता है सुख भी बस निर्लिप्त नहीं हो सकता ना सुख में ना दुःख में
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया निरंतर सुधार के लिए आवश्यक है | प्रतिक्रिया पश्चात् कृपया अन्य रचनाओं को पढ़कर भी अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |