"इसान: बध: यवय" से चिर शांति तक की यात्रा पर

 “इशान: बध: यवय” ऋग्वेद से उद्धृत इस पंक्ति का आशय है, “व्यक्ति अपनी परिस्थितियों का निर्माता स्वयं है |”


यदि आप और मै इस साधारण सी पंक्ति के साधारण से शब्दार्थ में छिपे गूढ़ भावार्थ को समझ ले तो शायद जीवन में आने वाली सभी परेशानियों, कठिनाईयों और उन सैकड़ों तकलीफों से हमारा पिण्ड छूट जाए जिनसे हम व्यथित रहते है और जीवन का वास्तविक आनन्द उठा ही नहीं पाते |

विवेकानन्द कहते है, “किसी भी समस्या या तकलीफ से उबरने के लिए आवश्यक है पहले उसके मूल में जाकर कारण को अन्वेषित किया जाए | यदि मानव वास्तविक एंव सच्चा अन्वेषण करेगा को पायेगा की हर समस्या, हर दुःख, हर तकलीफ या हर आफत के मूल में व्यक्ति स्वयं ही विद्यमान है |” विवेकानन्द का यह सन्देश इंगित करता है कि मनुष्य खुद ही अपनी सभी समस्याओं का कारण है|” जो स्पष्ट तौर पर ऋग्वेद की उक्ति को प्रमाणित करता है |

मनुष्य की एक सहज वृत्ति यह भी है की वो अपने ऊपर आने वाली आफत या अपनी वर्तमान दुखदायक स्थतियों के लिए खुद को कभी दोषी नहीं मानता | व्यक्ति अपनी समस्या के मूल कारण की खोज करने की बजाय अक्सर यह खोज करता है कि अपनी समस्या का दोषी किसे बनाना है या मेरी इस तकलीफ का ठीकरा किसके ऊपर फोड़ना ज्यादा उचित रहेगा ? ज्यादातर तो व्यक्ति को कोई न कोई ऐसा तत्व या व्यक्ति मिल ही जाता है जिसे वह दोषी ठहराकर खुद के लिए संवेदना बटोरता या खुद के मन को दिलासा देता है और यदि कभी कोई दोषी नहीं मिलता है तो मानव अपनी चतुराई का परिचय देते हुए बड़ी ही सहजता से सारा का सारा दोष अपने नसीब या भाग्य के कंधो पर लाद देता है | कहता है, “मेरा तो भाग्य ही खराब है सो मै इस जंजाल में पड़ा |” या कहेगा “मेरे तो नसीब फूटे हुए है जो मुसीबतें मेरे पीछे पड़ी है |”

इस बात पर आप सभी मुझसे एक मत होंगे की, “यदि हमें हमारे सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा पाना है तो हमें ऋग्वेद की उक्ति इसान: बध: यवय को आत्मसात कर पूर्ण विश्लेषण के साथ यह स्वीकारना पड़ेगा की हमारे सभी कष्टों के मूल में हम खुद ही है |”

अब आपके मन में यह प्रश्न भी उठ रहा होगा कि, “जब भाई समस्या का कारण बता दिए हो तो इलाज भी बताओ ?”

हमारी समस्या का इलाज मिला फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘पहलवान की ढोलक’ में | इस कहानी का नायक जब कुश्ती लड़ते हुए विरोधी पहलवान के चंगुल में फंस जाता है तब उसे अखाड़े में ही बज रही ढोलक की ‘धाक-धिन, धक्-धिनाक-धिन’ की आवाज सुनाई देती है और उस आवाज से नायक यह सन्देश पाता है कि, “दांव काटो, बाहर हो जाओ” , बस फिर क्या था लुट्टन पहलवान (नायक) दांव काटकर बाहर हो जाता है फिर विरोधी को ऐसी पटखनी देता है की विरोधी चारो खाने चित |

ढोलक का सन्देश “दांव काटो, बाहर हो जाओ” हमारी जिन्दगी के लिए भी उतना ही प्रासंगिक है जितना की पहलवान के लिए था |

जब हमें पता चल गया की हमारी परिस्थितियों के निर्माता हम स्वयं है तो फिर हम ही उसे सुधार सकते है और उसका सीधा और सहज उपाय है उस से उबर जाना | ऐसी समस्याओं, दुसह्य कष्टकारक स्थितियों और विपदाओं जिन्होंने हमें घेर लिया है और छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही है उनका सीधा समाधान है, परिस्थितियों के दांव को काटो और बाहर हो जाओ | बाहर होने के बाद उन्हें ऐसी पटखनी दो की विजयश्री के पुरस्कार के रूप में जीवन के वास्तविक आनन्द की प्राप्ति हो |

सारगर्भित रूप में कहूँ तो हमारी समस्त समस्याओं को “इसान: बध: यवय” और “दांव काटो, बाहर हो जाओ” के दो सामान्य सिद्धांतो को अपनाकर निपटाया जा सकता है | बस ये दो सिद्धांत और उसके बाद जीवन में शांति, सुकून और सत चित आनन्द की बहार |

धन्यवाद

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