मन और मस्तिष्क में एक युद्ध है, हालाँकि युद्ध की भावना शुद्ध है |
फिर भी इस आपसी द्वंद के मध्य में, आत्मा चिर मौन बुद्ध है ||1||
मस्तिष्क सब कुछ परखता है, फिर अपनी बात रखता है |
लेकिन मन को परीक्षा से क्या, यह तो सिर्फ भाव समझता है ||2||
दिमाग ने सब समझा दिया, लेकिन मन मानता नहीं |
विचारो की धुरी को, घुमा-घुमाकर फिर लाता है वहीँ ||3||
मन-मस्तिष्क के इस झगड़े में, आत्मिक शांति खोती है |
मौन को भंग कर, वह भी अब रोती है ||4||
समाधान इस झगड़े का, अब तक न मिल पाया है |
जीवन का अध्याय नया, जाने क्या पैगाम लाया है ||5||
अब इस समस्या को सुलझाने को, पुनः आत्मिक शांति पाने को,
मन-मस्तिष्क का तारतम्य बिठाने को, एक मार्ग नजर आया है ||6||
जिस बिन्दू ने मन-मस्तिष्क को टकराया है, उसी के समीप जाना है |
द्वंद का समाधान वही बताएगा, ऐसा मैंने माना है ||7||
आत्मचिंतन और वैचारिक मंथन से, पुनः आत्मिक शांति पाकर |
लक्ष्य प्राप्ति की ओर, मन-मस्तिष्क को खपाना है ||8||
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