प्रसन्न मुद्रा में भगवान् सामने खड़े
थे, बहुत से सवाल मन में अड़े थे |
कुछ राजनैतिक, कुछ सामाजिक तो कुछ
जीवन से जुड़े थे ||1||
प्रभु ने कहना आरम्भ किया, संवाद सत्र
प्रारम्भ किया |
प्रश्न पूछने की स्वीकृति देकर, अपने
आसन को कदम्ब किया ||2||
मैंने प्रश्नों की सूची थमाई, प्रभु
ने उसमें रूचि दिखाई |
कोरोना का पहला प्रश्न देखकर, हल्की सी
आँखे झपकाई ||3||
कोरोना इतना न फ़ैल पाता,
यदि सैर-सपाटा तुम्हे न सुहाता |
अब भी न जाग रहे हो,
गलियों में यूँ ही भाग रहे हो |
माना खुद से प्यार नहीं है,
पर अपनों को क्यूँ मार रहे हो ||4||
लापरवाही, बेफिक्री और गप्पों के
शौकीन तुम,
बेअदबी, घुम्म्कड़ी और हेकड़ी के अधीन
तुम |
कोरोना को निमंत्रित करके,
बने हो मानवता की तौहीन तुम ||5||
सामाजिक दूरी बनाओ,
टेलिकॉम का लाभ उठाओ |
सात्विक भोजन स्वस्थ जीवन अपनाकर,
दूसरों का बाहर जाना रुकवाओ ||6||
प्रकृति अपना संतुलन खुद करती है,
सबका बहीखाता रखती है|
भारत प्रकृति की संतान है,
इसीलिए जग में महान है ||7||
इस महान देश की गोद में, समाज के
दुश्मन बलवान है |
कोरोना करेगा हिसाब उनका, यही विधि का
विधान है ||8||
नोट :- 1. कोरोना में चीन के योगदान पर भगवान ने
अपनी मर्जी के बिना पत्ता भी न हिलने की बात कही|
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