आज सुबह से मन उदास था, क्योकि बादलों
से घिर आया आकाश था |
बार-बार सामने आता वो किसान, जो दीन-हीन
और हताश था ||1||
मौसम तो ठण्डा था, पर आँखे सुर्ख लाल
थी ||2||
अपना क्रोध दिखाने को, प्रकृति से भिड़
जाने को,
किसान व्यथा समझाने को, भगवान् का
आह्वान किया |
ज्योंही भगवान् आये, मैंने उद्दंटता का
पान किया |
किसानों को तड़पाते हो, मुख पे आया कौर
हटाते हो,
उनकी आँखों में आँसू झिल-मिलवाते हो, तो
किस हक से परम-पिता कहलाते हो ||3||
भगवान् मुस्कुराने लगे, उदारता अपनी
दिखाने लगे |
स्पष्ट शब्दों में कहा, मिट्टी में
जहर मिलाते हो ,
जहरीली फसल उपजाते हो, बरसात से हुआ
नष्ट जो जहर,
उस पर क्यूँ इतना चिल्लाते हो ||4||
भूमि को माता कहने वाले, गड्ढा अंदर
तक धंसाते हो |
पानी का मनमाना दोहन कर, सेव वाटर-सेव
वाटर हकलाते हो ||5||
भूमि को किया है बंजर, धरती की भी कोख
उजाड़ी |
अब गला फाड़ते फिरते हो, ज्यों घूम रहा
हो कबाड़ी ||6||
अब भी न देर हुई है, जगाओ अपनी चेतना
जो सोई पड़ी है |
कृषि का प्राकृतिक तरीका अपनाओ, पानी
को पुत्र की तरह बचाओ ||7||
आधुनिक विज्ञान का लाभ उठाओ, जल का
पुनर्भरण करवाओ |
मन में उपजे लालच को हटाओ, खालिस
मेहनत का लाभ पाओ ||8||
बिना प्रकृति को नुकसान पहुंचाए,जो
खेती के तरीके अपनाए |
बिन मौसम बरसात चाहे कितनी भी आये, किसान
का कुछ भी न बिगाड़ पाए ||9||
परम-पिता का दायित्व है पालन करना, तुम
सबका है रक्षण करना |
मै अपना कर्तव्य निभाऊंगा, पर पिता सा
अनुशासन भी सिखलाऊंगा ||10||
नोट
:-
भगवान से कुछ सवाल हमारी अन्य समस्याओं पर भी पूछे थे
लेकिन उनका जवाब अगली कड़ी में |
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