प्रेम से अदावत

एक तपती दोपहरी में,
भगवान मेरे घर आये,
चिल्लाकर मुझे बाहर बुलाया,
कहा, है तेरे लिए संदेसा लाये ||1||

प्रभु को देखकर चकित हुआ,
मन मेरा आनन्दित हुआ,
कहा, पहले आप अंदर आयें,
अपने श्री मुख से सन्देश सुनाएँ ||2||

कुपित होकर वो कहने लगे,
मैंने मानव बनाया और उसमे प्रेम जगाया,
तू कौन अधम प्राणी है,
जो प्रेम विरूद्ध खड़ा अगवानी है ||3||

सबसे सुन्दर भावना है प्रेम,
सृष्टि की झंकार है प्रेम,
व्यक्ति का परिष्कार है प्रेम,
मुझ ईश्वर का उपहार है प्रेम ||4||

माजरा कुछ कुछ समझ गया,
प्रभु के आगे हाथ जोड़ मै पड़ गया,
कहा, सबसे सुन्दर रचना अपनी बताते हो,
क्या वर्गीकरण इसका कर पाते हो ||5||

आज का मॉडर्न प्रेम प्रभु,
अपने बस का ये रोग नहीं,
दिन भर चिट्ठी पत्री का व्यवहार,
ये शुभ संयोग नहीं ||6||

प्रेम एक भावना है,
माना ये काफी सुहावना है,
उन लफंगो को कैसे समझाऊँ,
जिनका प्रेम डरावना है ||7||

प्रेम के बहुत से प्रकार है,
माता-पिता, भाई-बहिन जैसे इसके आधार है,
ये टुच्चे और कुछ न देख पायेंगे,
इनके लिए तो प्रेम मात्र प्यार है ||8||

गर पूछ लूँ इनको,
कि क्या तेरे प्यार का आधार है,
गच्चा देकर लड़ने वाले,
अगले ही पल फरार है ||9||

प्रभु प्रेम से न मेरी अदावत है,
जीवन में सबके झंझावत है |
फेसबुक, व्हाट्सएप्प के ज़माने में,
प्रेम अप्राप्य एरावत है ||10||

लोग यह समझ नहीं पाते,
झूठी माया को है प्यार बताते,
करते समय नष्ट और धोखा खाते,
फिर सच्चे प्यार से भी डर जाते ||11||

ऐसे धोखों से डरता हूँ,
मेरी बहिनों के साथ होते अन्यायों से,
अखबारों में दो चार होता हूँ,
हाँ प्रभु मै प्रेम से अदावत रखता हूँ ||12|| 

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