गाँव और शहर

मेरे मित्र समूह में कई मित्रों का मानना है की ग्रामीण परिवेश अच्छा है तो कईयों को लगता है की शहरी जीवन की तो होड़ ही नहीं | वस्त्तुतः दोनों ही विचार न तो पूर्ण रूप से असत्य और न ही पूर्ण रूप से सत्य | मेरे मन में भी आया कि क्यों न दोनों का तुलनात्मक रूप प्रस्तुत किया जाय |

                 ग्राम की शांति -शहर का विकास 

सत्तर फीसदी ग्रामीण, तीस फीसदी शहरी |
मौलिक ज्ञान है ग्रामीण, मशीनी कचरा है शहरी|
घर में दुबका शहरी तो ग्रामीण देश का प्रहरी |
शहर में सुविधाओं का अम्बार तो गाँव में सोच समझ लेती आकर ||1||

इतना सुनकर शहर बोल पड़ा,
जीवन प्रगतिपथ खोलकर खड़ा |
इतना मुझे क्यू गरियाते हो,
मै तो सिर्फ सफलता के लिए हूँ अड़ा ||2||

गाँव ने भी अपना विचार रखा,
पुछा, है कभी अनंत शांति का स्वाद चखा |
सफलता और उन्नति के सूबे भरते हो,
बताओ जरा सुकून कहा से लाते हो ? ||3||

शहर इतना भी न बेडौल था,
जो उड़ रहा उसका मखौल था |
लोगों के जीवन में नए आयाम लाकर,
जीवन वृत्त का सुखद अंजाम था ||4||

शहर की समृद्धि और गाँव का सुकून


बात जब हद से आगे बढ़ गई,
बहस घमासान छिड़ गई |
गए एक साधू के पास,
निर्णय कलम उसके हाथ पड़ गई ||5||

साधू ने हंसकर कहनाआरम्भ किया,
दोनों को समता के माप पर खड़ा किया |
कहा, शांति-सुकून-साहस और विश्वास गाँव की कुंजी,
तो प्रगति-सुविधा-अध्ययन और अवसर है शहर की पूंजी ||6||

अब निर्णय हो आ गया था,
दोनों हेतु समानता लाया था |
गुणों को ग्रहण करो, दोषों का त्याग,
यही पाठ पढाया था ||7||

-: नरेश पुरोहित :-

ग्राम और शहर दोनों ही एक दुसरे के पूरक है और दोनों के होने से ही उनका अस्तित्व है | इसलिए सदैव किसी को बड़ा और छोटा मापने की बजाय मानव जीवन के लिए आवश्यक तत्वों की पहचान कीजिये | नतीजा खुद ब खुद सामने होगा | 

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