देखते-देखते कितना बदला जमाना,
अंदाजा हो तो मुझे भी कुछ बताना |
शुरूआती तौर पर सुनो एक अफसाना,
सत्य न हो तो निश्चित समझाना ||1||
सुबह-शाम का एक निश्चित नहीं पैमाना,
मारा-मारा फिर रहा है एक राही अनजाना |
चाहत है अपनी जिंदगी को सजाना,
कहीं बनकर न रह जाए कोई गुमनाम तराना ||2||
जीवन एक यात्रा है, यह कहाँ जाना ?
पथरीली राह तो सुरम्य छाह का खजाना |
मानो मान लिया दृश्य तकदीराना,
परन्तु कर्म से है खुद को जीतना ||3||
अंत में अभिव्यक्ति को सारित करता हूँ,
कितना बताना, कितना छुपाना ?
कितना करना तो कितना टालना ?
कितना है सोना तो कितना है जागना ?
मित्रों, बनालो इसका एक निश्चित पैमाना |
साकार हो जाएगा मंजिल का सुखद सपना ||4||
-: नरेश पुरोहित:-
2 टिप्पणियाँ
प्रेरणादायक कविता , बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
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