क्या मनु गलत थे ?

विज्ञान आज भी शोध कर रहा है कि वह पहला मानव कौन था जिसने इस सम्पूर्ण सृष्टि की नींव बनने का कार्य किया | आसान भाषा में कह सकते है कि मानव सभ्यता के पहले मानव का पता विज्ञान के पास नहीं है, जब विज्ञान मानव की जिज्ञासा शांत नहीं कर पाता है तब व्यक्ति धर्म, अध्यात्म और धर्मग्रन्थों की टोह लेता और खुद की जिज्ञासाओं को संतुष्ट करने का प्रयास करता है | अलग-अलग धर्मावलम्बी अपने-अपने पंथ और मत के अनुसार मानव सभ्यता का आरम्भ अलग-अलग मानवों के युग्म से बताते है |

धार्मिक आधार पर सर्वाधिक जनसँख्या वाले ईसाई जहाँ एडम और ईव से तो दूसरे स्थान पर काबिज मुस्लिम धर्म के समर्थक आदम और हौव्वा से मानव सभ्यता की उत्पत्ति मानते है, अगले क्रम में हिन्दू धर्मावलम्बी या सनातन सभ्यता के समर्थक मनु और स्मृति से मानव सभ्यता का आगाज मानते है | अपनी-अपनी मान्यताओं के आधार पर खुद के धर्म को प्राचीन बताने के लिए सभी में होड़ सी लगी रहती है और प्राचीनता को पुख्ता करने के लिए समय-समय पर विभिन्न प्रमाण भी उपलब्ध करवाए जाते है |

          इन्ही प्रमाणों में वे पुस्तकें भी सम्मिलित है जिन्हें इन तथाकथित प्रथम मानवों ने लिखा था, इन पुस्तकों में मानव को जीवन कैसे जीना है? क्या करना है? और अलग-अलग पदों पर आसीन पदाधिकारियों को अपने दायित्वों का निर्वहन कैसे करना है? आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है |  हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए लिखित पुस्तक का नाम है ‘मनुस्मृति’ |


समस्या की शुरुआत होती है, श्री भीमराव (BR) अम्बेडकर जी के द्वारा सार्वजनिक तौर पर मनुस्मृति को जलाने और यह आरोप लगाने से की मनु ने जो जाति व्यवस्था कायम की है उससे दलितों पर अत्याचार होता है और मनुस्मृति उन अत्याचारों का समर्थन करती है | सार में, मनु जाति व्यवस्था या वर्ण व्यवस्था लागू करके हिन्दू धर्मावलम्बियों को तोड़ने वाले थे और दलितों पर अत्याचारों के समर्थक थे |


अम्बेडकर की बात को मनुस्मृति के कुछ नियमों के आधारों पर सही माना जा सकता है लेकिन उससे पहले एक बात पर गौर किया जाना आवश्यक है कि क्या कोई पिता अपनी संतानों को आपस में लड़वाना या पिटवाना चाहेगा या क्या कोई पिता चाहेगा की उसकी संतान एक-दूसरे को दमित और नीच-गलीच समझकर व्यवहार करे ? शायद आपका उत्तर होगा- नहीं, एक पिता ऐसा कभी नहीं चाहेगा | सामान्य सी बात है की मनु नामक यदि कोई प्रथम व्यक्ति थे तो उनकी चार संताने थी- ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र | उनका जन्म भी इसी क्रम में हुआ होगा | जो बड़ा होता है उसे ज्यादा प्यार या सम्मान मिलता है और बच्चो में ये आपसी ईर्ष्या का कारण भी होता है | इसके बाद जब बड़े हुए तो सभी अपनी योग्यता और सामर्थ्य के अनुसार कार्यों में लग गए | ब्राह्मण जहाँ वेदग्य हुआ और नितीपराकता से सभी को मार्ग बताने लगा तो, क्षत्रीय योद्धा हो गया और सभी की रक्षा के साथ भू-स्वामी भी हुआ | वैश्य ने अपने चातुर्य से व्यापारिक गतिविधियों को अंजाम दिया तो भोले-भाले और सीधे शूद्र ने सभी की सेवा-सुश्रुषा का जिम्मा अपने सिर पर लिया |

          वास्तविक समस्या यहाँ खड़ी हुई जब उन्हें उनके कार्यों से जोड़कर बढ़ते परिवार के आधार पर वर्णों के आधार पर बांटकर उन्हें वही कार्य करने को मजबूर किया गया जो कार्य उनके वर्ण से सम्बन्धित प्रथम व्यक्ति ने किये थे |

अब प्रश्न खड़ा होता है कि क्या ऐसी मानवीय परिस्थितियों में मनु अपने पुत्रों के बारे में गलत लिख सकते थे ? क्या मनु ने शूद्रों को दबाने या कुचलने हेतू निर्देश दिया होगा ? क्या मनु अपने तीन पुत्रों को कहेंगे कि मेरे सबसे छोटे पुत्र को सताओ और उसे आगे मत बढ़ने दो?

निश्चित तौर पर ऐसा नहीं हुआ होगा, संभावना इस बात की है, “मनु ने अपने पुत्रों को समभाव और सामंजस्य से रहने का निर्देश दिया और उन्हें उपदेशित किया हो की तुम्हे एक होकर कैसे रहना है, लेकिन जब उन उपदेशों को पुस्तक की शक्ल दी गई हो तब उसमे छेड़-छाड़ की गई हो |” इस सब में मनु कहाँ गलत है, जरा समझाइये |

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