जीवन व्यर्थ क्यों किया ?

प्रिय बुद्धिजीवी,
                      आपको नमस्कार और साथ ही धन्यवाद की आपने अपने व्यस्त समय में से इस लेख को पढने के लिए समय निकाला | आपसे निवेदन है कि इस लेख को पूरा पढिये और जो बात मै कहना चाह रहा हूँ अगर आप इससे सहमत है तो अन्य लोगों को भी जागृत करने में मेरी सहायता कीजिये |
                                                                                                                कल्पना कीजिये, आप किसी ऐसे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपने जीवन को खपा रहे है जिससे आपको कोई विशेष फायदा नहीं होगा लेकिन समाज और राष्ट्र उससे व्यापक तौर पर लाभान्वित होंगे और उनके जीवन को सकारात्मक दिशा मिलेगी | आपको यह भी पता है की ऐसा महान कार्य करते हुए आपका जीवन नष्ट हो जाएगा फिर भी आप पूरे जोश और जूनून से उस कार्य में लगे रहे और आखिर आपने उस उद्देश्य को प्राप्त करने में सफलता हासिल भी कर ली | सफलता प्राप्ति से राष्ट्र में व्यापक बदलाव आये | अब आपकी इस कल्पना को ब्रेक लगते हुए सोचिये की इतने बड़े समर्पण के बाद लोग कहे कि "जाने दो, इतिहास में हुआ सो हुआ, वर्तमान का उससे क्या लेना देना ?" आपको कैसा लगेगा ? निश्चित तौर पर आपका मन खटास में पड़ जाएगा | आप जिस अवस्था में भी होंगे आपके मन में मात्र एक ही सवाल आएगा कि "जीवन व्यर्थ क्यों किया ?"
                       आपको जान कर हैरत होगी की भारत के इतिहास में ऐसे अनगिनत वीर दफ्न है जिन्होंने अपना जीवन इसी तरह व्यर्थ कर दिया | अभी कुछ समय पहले विभिन्न राजनैतिक विचारों को लेकर मेरी अपने सम्बन्धियों से चर्चा हो रही थी, इस दौरान सुभाष चन्द्र बोस का जिक्र आया और कई सवाल खड़े हो गए | उनकी मौत को लेकर जो रहस्य है और उनकी मौत को रहस्य बनाये रखने के लिए जो लोग जिम्मेदार है उनको लेकर मैंने प्रश्न खड़े किये तो जवाब आया कि उनको क्या याद करना ? इतिहास में जो हो गया सो हो गया | एक बारगी सुनकर तो मेरा दिमाग भन्ना गया |  जिस व्यक्ति ने अपना सारा जीवन इस देश के नाम कर दिया उसकी मौत क्या  मायने नहीं रखती ?
नेताजी ने अपने समय में भारतीय नागरिक सेवा की परीक्षा में 4th रैंक हासिल की थी, चाहते तो अपने और अपने परिवार के साथ बड़े ऐशोआराम से अपनी जिन्दगी गुजार सकते थे पर उन्होंने मुश्किल रास्ता चुना और देश के स्वाधीनता संग्राम में कदम रखकर ऐसे अनगिनत कार्यों को अंजाम दिया जो एक साधारण व्यक्ति के लिए नामुमकिन प्रतीत होते है | इतिहास में राजा-महाराजा सेनाओं का निर्माण कर युद्धों में खुद के हित के लिए लड़ाई लड़ते थे , लेकिन माँ भारती के इस पुत्र ने अकेले अपने दम पर आजाद हिन्द फौज का गठन कर भारत के अंदर और विदेशी देशो के द्वारा ब्रितानी हुकुमत पर दवाब बनाया और उसे घुटने टेकने के लिए विवश करने का मंशूबा भरा जो एक अनोखा उदाहरण है लेकिन वर्तमान लोगों की मानसिकता और सोच को देखकर मै तो नेताजी से एक ही बात कहना चाहूँगा, "हे महान आत्मा, तूने अपना जीवन हम जैसे लोगों के लिए व्यर्थ क्यों किया ?" हुआ तो हुआ जैसे लोगों को सोचना चाहिए की यदि इन्होने इतिहास में बलिदान नहीं दिया होता तो जिस स्वतंत्रता से हम कुछ भी बकने में गुरेज नहीं करते वो शायद हमें कभी प्राप्त ही नहीं होती |
बात सिर्फ नेताजी सुभाषचंद्र बोस की ही नहीं महात्मा गाँधी की भी है | आज लोग हजारों तरह के प्रमाण खड़े करते है कि महात्मा गांधी में महात्मा के लक्षण नहीं थे, भगवान न करे की उनकी ये बाते सच हो | हो सकता है की उनकी बाते सच भी हो लेकिन एक बात सभी को मनानी पड़ेगी की  
   अगर गांधी में महात्मा वाले गुण नहीं थे तो वो कौनसी चुम्बकीय शक्ति थी जिससे लाखों लोगों की भीड़ उनके हर अनुरोध का शब्दशः पालन करती थी | उनमें कोई न कोई शक्ति तो थी जिसके कारण आज भी लोग उनके अनुयायी है, उस शक्ति को या उस मानसिक कार्य योजना को आप क्या नाम  देंगे ? अगर लोग कहे की गाँधी जी ने सब कुछ राजनैतिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए किया तो अपने किसी भी अंशज या उत्तराधिकारी की उद्घोषणा क्यों नहीं की ?
हे महान आत्मा, तूने अपना जीवन हम जैसे लोगों के लिए व्यर्थ क्यों किया ?

आज के परिपेक्ष्य में ऐसी ही स्थिति सभी क्रांतिकारियों की हो रखी है | लोग चन्द्रशेखर आजाद, शहीद भगतसिंह, सरदार वल्लभभाई पटेल, अम्बेडकर और वीर सावरकर जैसे कई झुजारू योद्धाओ के बारे में बात करते करते इस हद तक अपनी राजनैतिक विचारधारा के आगोश में आ जाते है की उनके समर्पण और बलिदान को झूठा और आडम्बर युक्त बताने के लिए कटिबद्ध हो जाते है | इतिहास में ऐसे भी कई जाहिल और नीच गलीच रहे है जिन्होंने स्वतंत्रता से ज्यादा तवज्जो अपनी संतानों के भविष्य निर्माण और अपनी अय्याशी को दी और भारत को परतंत्र रखने की उनकी मंशा और भारत विभाजन में उनका योगदान अतुलनीय रहा है | उन मंदबुद्धियों ने हिन्दू मुस्लिम की लड़ाई के जो बीज बोये उनके उगे वृक्ष आज भी दोनों कौमों को बराबर बींध रहे है | उनके गुणगान का खंडन को सार्वजनिक मंच से आवश्यक है लेकिन वास्तव में जिन्होंने अपने तन, मन और धन का त्याग किया, ऐशोआराम की जिंदगी के विकल्प की बजाय पथरीली राह को चुना और अपनी जान इस देश को समर्पित कर दी, यदि आपका दिल उनके जीवन की घटनाओं और उनकी मौत को मात्र एक मामूली ऐतिहासिक घटना मानता है को पुन: विचार कीजिए की आप इस आजाद हवा में सांस कैसे ले रहे है ? यदि लोगों की मानसिकता ऐसी ही रही तो वो दिन दूर नहीं जब कोई भी राष्ट्रहित में कार्य करने से पहले सौ बार सोचेगा | शायद, इस भारत के परिमार्जन को अपना जीवन समर्पित करने वाले ये न सोच बैठे कि "जीवन व्यर्थ क्यों किया ?"

धन्यवाद और एक बार मंथन जरूर करें |
नरेश पुरोहित s/o मनोज कुमार 
nmpurohit1998@gmail.com
                                                                          

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