जाग जा प्राणी



आज एक आघात लगा,
लगा मुझसे अँधेरा छंटा,
रे मनवा ! मेरे तू,
शक्ति प्राप्ति हेतू खुद को भगा ||1||
मत कर विश्वास किसी पर तू,
अपनी राह स्वयं बना तू,
चलता-चल मंजिल की खोज में ,
कारवाँ अपना बढ़ाता चल तू ||2||
आएँगे कई पत्थर तेरी राह में,
खो न जाना तू बीच मझधार में,
रे मनवा मेरे,
शक्ति प्राप्ति ही शीर्ष है जग में ||3||
प्यार, मोहब्बत धोखा मै कहता हूँ,
लक्ष्य की राह ही श्रेष्ठ बताता हूँ ,
अपना ले साम, दाम, दण्ड, भेद तू,
विजय के लिए मै तुझे चुनता हूँ ||4|| 

      
                                                                            -: नरेश पुरोहित :-


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10 टिप्पणियाँ

  1. कठोर यथार्थ वादी कविता
    जीवन के खुरदरे अनुभव से उपजी लगती है

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    1. जितना जान पाया बस उसी हिसाब से लिख दिया

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  2. बहुत सुंदर और कविता लिखे

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  3. Vijay ojha2/3/19, 7:52 pm

    बहुत सुंदर

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. It's good to be able to write down your thoughts effectively. Keep writing more.

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  6. pyar mohhobat dhokha Hota toh adha vishv lakshheen hota.🤘

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  7. बेनामी18/4/20, 6:34 am

    शायद वैश्विक लक्ष्य की प्राप्ति के संदर्भ में मेरी बात गलत निकले |

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