आज एक आघात लगा,
लगा मुझसे अँधेरा छंटा,
रे मनवा ! मेरे तू,
शक्ति प्राप्ति हेतू खुद को भगा ||1||
मत कर विश्वास किसी पर तू,
अपनी राह स्वयं बना तू,
चलता-चल मंजिल की खोज में ,
कारवाँ अपना बढ़ाता चल तू ||2||
आएँगे कई पत्थर तेरी राह में,
खो न जाना तू बीच मझधार में,
रे मनवा मेरे,
शक्ति प्राप्ति ही शीर्ष है जग में ||3||
प्यार, मोहब्बत धोखा मै कहता हूँ,
लक्ष्य की राह ही श्रेष्ठ बताता हूँ ,
अपना ले साम, दाम, दण्ड, भेद तू,
विजय के लिए मै तुझे चुनता हूँ ||4||
-: नरेश पुरोहित :-
-: नरेश पुरोहित :-
10 टिप्पणियाँ
कठोर यथार्थ वादी कविता
जवाब देंहटाएंजीवन के खुरदरे अनुभव से उपजी लगती है
जितना जान पाया बस उसी हिसाब से लिख दिया
हटाएंबहुत सुंदर और कविता लिखे
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंIt's good to be able to write down your thoughts effectively. Keep writing more.
जवाब देंहटाएंSuper
जवाब देंहटाएंpyar mohhobat dhokha Hota toh adha vishv lakshheen hota.🤘
जवाब देंहटाएंशायद वैश्विक लक्ष्य की प्राप्ति के संदर्भ में मेरी बात गलत निकले |
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया निरंतर सुधार के लिए आवश्यक है | प्रतिक्रिया पश्चात् कृपया अन्य रचनाओं को पढ़कर भी अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |